शनिवार, 20 दिसंबर 2008
विषय पर जानकारी कितनी
रविवार, 30 नवंबर 2008
उत्तम वाणी, सत्य वचन, धीर गंभीर मृदु वाक्य
उत्तम वाणी, सत्य वचन, धीर गंभीर मृदु वाक्य
मनुष्य को सदा उत्तम वाणी अर्थात श्रेष्ठ लहजे में बात करना चाहिये, और सत्य वचन बोलना चाहिये, संयमित बोलना, मितभाषी होना अर्थात कम बोलने वाला मनुष्य सदा सर्वत्र सम्मानित व सुपूज्य होता है । कारण यह कि प्रत्येक मनुष्य के पास सत्य का कोष (कोटा) सीमित ही होता है और शुरू में इस कोष (कोटा) के बने रहने तक वह सत्य बोलता ही है, किन्तु अधिक बोलने वाले मनुष्य सत्य का संचित कोष समाप्त हो जाने के बाद भी बोलते रहते हैं, तो कुछ न सूझने पर झूठ बोलना शुरू कर देते हैं, जिससे वे विसंगतियों और उपहास के पात्र होकर अपमानित व निन्दनीय हो अलोकप्रिय हो जाते हैं । अत: वहीं तक बोलना जारी रखो जहॉं तक सत्य का संचित कोष आपके पास है । धीर गंभीर और मृदु (मधुर ) वाक्य बोलना एक कला है जो संस्कारों से और अभ्यास से स्वत: आती है ।
रविवार, 2 नवंबर 2008
उपयोगी बनो, समय का सदुपयोग करो
''चिल्ला कर और झल्ला कर बातें करना, बिना सलाह मांगे सलाह देना, किसी की मजबूरी में अपनी अहमियत दर्शाना और सिद्ध करना, ये कार्य दुनियां का सबसे कमजोर और असहाय व्यक्ति करता है, जो खुद को ताकतवर समझता है और जीवन भर बेवकूफ बनता है, घृणा का पात्र बन कर दर दर की ठोकरें खाता है ।''
''जो समय को नष्ट करता है, समय भी उसे नष्ट कर देता है''''समय का हनन करने वाले व्यक्ति का चित्त सदा उद्विग्न रहता है, और वह असहाय तथा भ्रमित होकर यूं ही भटकता रहता है''
गुरुवार, 16 अक्टूबर 2008
बेवकूफों और अन्धों के लिये शास्त्र और दर्पण क्या कर सकते हैं
यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा शास्त्रं तस्य करांति किं
लोचनाभ्यां विहीनस्य दर्पण: किं करिष्यिति
जिस मनुष्य में स्वयं का विवेक, चेतना एवं बोध नहीं है, उसके लिये शास्त्र क्या कर सकता है । ऑंखों से हीन अर्थात अन्धे मनुष्य के लिये दर्पण क्या कर सकता है ।
सोमवार, 15 सितंबर 2008
मूरख को उपदेश देने से क्या लाभ
उपदेशो हि मूर्खाणां प्रकोपाय न शान्तये ।
पय: पानं भुजंगांनां केवलं विष वर्धनम् ।।
मूर्ख को उपदेश करने का कोई लाभ नहीं है, इससे उसका क्रोध शान्त होने के बजाय और उल्टे बढ़ता ही है । जिस प्रकार सॉंप को दूध पिलाने से उसका जहर घटता नहीं बल्िक उल्टे बढ़ता ही है ।
शनिवार, 30 अगस्त 2008
कमजोर राजा और पतले वृक्ष की शरण कभी न लें ये अवश्य धोखा देते हैं
रहति लटपट काटि दिन, बरू घामें मां सोय । छांह ना बाकी बैठिये, जो तरू पतरो होय ।। जो तरू पतरो होय, एक दिन धोखा दैहे । जा दिन बहै बयारि, टूटि तब जर से जैहे ।। कह गिरधर कविराय, छांह मोटे की गहिये । पाती सब झरिं जांय, तऊ छाया में रहिये ।। पतले वृक्ष अर्थात कमजोर राजा की शरण या राज्य में नहीं रहना चाहिये, ऐसे राजा के राज्य की शरण में रहने से एक दिन तगड़ा धोखा होता है और जिस दिन भी तेज हवा या आंधी चलती है, कमजोर और पतले वृक्ष जिस तरह जड़ से उखड़ कर उड़ जाते हैं, उसी तरह ऐसा राजा भी कुनबे सहित भाग निकलता है और लुप्त व गुप्त हो जाता है । भारत के प्रसिद्ध गिरधर कवि ने इस कुण्डली में कहा है कि सदा ही मोटे वृक्ष और भारी राजा (जिसका साम्राज्य पुख्ता हो और प्राचीन हो तथा विश्वसनीय कुल का हो) की ही शरण व राज्य का आसरा लेना चाहिये । ऐसा वृक्ष सारी पत्तियां झड़ जाने के बावजूद भी छाया और सुख प्रदान करता है, ऐसा राजा व उसका राज्य भी सब कुछ व्यतीत हो जाने या नष्ट हो जाने पर भी सुख व समृद्धि देता है । अन्यथा भीषण लपट और घाम (तेज धूप) रहते हुये भी बिना वृक्ष के खुले में बैठकर कष्ट भोगना उत्तम है- गिरधर कवि की कुण्डली भारत के अति मान्य प्राचीन कवि
बुधवार, 27 अगस्त 2008
वाणी से धोखा होता है, वाणी के धोखे न आयें
मधुरी मीठी बानी, दगाबाज की निशानी ।
मीठा और मधुर बोल कर लोग पीठ में छुरा घोंपते है, ऐसे लोगों से सावधान रहना चाहिये, ये लोग दगाबाज होते हैं – घाघ भड्डरी
हल्दी जर्दी नहिं तजे, खटरस तजै न आम । शीलवान गुन ना तजै, ना औगुन तजै गुलाम ।।
हल्दी अपना पीला रंग नहीं छोड़ती, आम अपनी खटास नहीं छोड़ता, इसी प्रकार कुलीन और शीलवान लोग अपने गुण नहीं छोड़ते, और वर्णसंकर कुलहीन लोग अपने अवगुण नहीं छोड़ते ।। मुंह में राम, बगल में छुरी इस देश में बहुत संख्या ऐसों की है जो मुख से वाणी कुछ और निकालते हैं, और ब्गल में छुरी छिपा कर रखते हैं - भारत की प्राचीन देशी देहाती कहावतें
सोमवार, 25 अगस्त 2008
गदहे से गदहें मिलें, मारें लातई लात
ज्ञानी सों ज्ञानी मिलें, होंय ज्ञान की बात । मूरख से मूरख मिलें चलिहें घूंसा लात ।।
थोड़ा बदल कर भारत के अन्य क्षेत्रों में द्वितीय पद यह है – गदहे सों गदहा मिलें, मारें लातई लात ।। भावार्थ यह है कि जब दो विद्वान या चतुर सुजान (सुज्ञान का अपभ्रंश) मनुष्य मिलते हैं तो आपस में विद्वता व ज्ञान तथा सामंजस्य युक्त व्यवहार व आचरण कर बड़ी से बड़ी समस्या का निवारण चुटकियों में आसानी से निकाल लेते हैं, किन्तु जब दो मूर्ख मनुष्य आपस में मिलते हैं तो वे बात बात पर घूंसा और लात चलाते रहते हैं, वे किसी भी समस्या का निवारण नहीं कर पाते और समस्या को उल्टे उलझाते चले जाते हैं, जैसे जब दो गधे मिलते हैं तो सारा समय एक दूसरे को लतियाते रह कर लातें मारते रहते हैं । गोस्वामी तुलसीदास ने राम चरित मानस में इसी पद सार को इस प्रकार व्यक्त किया है- जहॉं सुमति तहॉं संपति नाना, जहॉं कुमति तहॉं विपति निधाना ।। अर्थात जहॉं सुमति अर्थात अच्छी मति (बुद्धि) के लोग मिल जुल कर प्रेमपूर्वक सामंजस्यपूर्ण ढंग से रहते हैं वहॉं नाना प्रकार (भांति भांति की या अनेक प्रकार की) की संपत्तियां, सुख व समृद्धियां निवास करतीं हैं, किन्तु जहॉं कुमति अर्थात दुर्बुद्धि से ग्रस्त होकर लोग आपस में कलह क्लेश युक्त वातावरण में परस्पर विद्धेष रख कर लड़ते झगड़ते हुये रहते हैं वहॉं नाना प्रकार की विपत्तियां व संकट अपने आप ही पैदा होते रहते हैं और सुख समृद्धि व समस्त संपत्ति स्वत: नष्ट हो जाती है - संकलित, प्राचीन भारतीय कहावत एवं रामचरित मानस से
रविवार, 24 अगस्त 2008
दूसरे का धर्म दुख देने वाला होता है
श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।
स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः॥३-३५॥
It is better to perform ones own duty. Own duty (svadharmah), how- so- ever deficiently performed, is superior to the well-accomplished duty of some one else (prescribed for some one else). Better is death in one's own duty, as there always remains fear while performing the duty of some one else.
Lesson: For liberation from fear, perform your own obligatory duty rather than attending to the jobs prescribed for some one else.
अच्छी तरह से आचरण में लाए हुए दूसरे के धर्म से गुण रहित भी अपना धर्म अति उत्तम है। अपने धर्म में तो मरना भी कल्याणकारक है और दूसरे का धर्म भय को देने वाला है। ॥३५॥ भगवान श्रीकृष्ण श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 3 श्र्लोक 35
बुधवार, 20 अगस्त 2008
बुद्धि और विवेक के बगैर ज्ञान बेकार है, पढ़ना के साथ गुनना भी जरूरी
ज्ञान मृत होता है, उसमें न तो स्वयं की चेतना होती है न स्वयं सक्रियता, उसे चेतन होने के लिये बुद्धि की आवश्कता होती है, और सक्रिय होने के लिये बुद्धि से संयोग की, लेकिन ज्ञान का सदुपयोग और सुसक्रियता हेतु विवेक की आवश्यकता होती है, विवेक ही उचित अनुचित में फर्क करता है, प्रज्ञा बुद्धि को स्थिर करती है । पुस्तक में बन्द पड़ा ज्ञान मृत ही रहेगा यदि उसे बुद्धि व विवेक का सामर्थ्य, सहयोग व सक्रियता न मिले । चतुर मनुष्य बुद्धि की साधना कर विवेक से ज्ञान का सदुपयोग करते हैं, मूर्ख मनुष्य ज्ञानी होकर भी बुद्धि के अभाव में उसका उपयोग नहीं कर पाते, और जड़ कहे जाते हैं, ज्ञान का दुरूपयोग करने वाले मनुष्यों में विवेक का अभाव होता है । ज्ञान दही है, बुद्धि मथनी और विवेक उसका घृत होता है । - संकलित हिन्दू धर्म शास्त्रों से
रविवार, 17 अगस्त 2008
बारूद का ढेर मत बनिये, शान्त चित्त रहिये
उस मनुष्य के पास कौन बैठना चाहेगा, उस मनुष्य को कौन अपने पास बिठाना चाहेगा, जो हमेशा बारूद का ढेर बना घूमता है, और जिसका पता नहीं कि वह कब फट पड़े – जेम्स एलन
आलस्य मनुष्य का महा शत्रु है
आलस्यो हि मनुष्यांणां महारिपु:
आलस्य ही मनुष्य का महाशत्रु है – चाणक्य
तुलसी मीठे वचन सों, सुख उपजत चहुँ ओर ।
वशीकरन एक मंत्र है तजि दे वचन कठोर ।।
तुलसीदास जी कहते हैं, कि मधुर वाणी से चारों ओर सुख बढ़ता है और लोकप्रियता बढ़ती है । कठोर वाणी का त्याग करना ही सबसे बड़ा वशीकरण मंत्र है । - संकलित
वशीकरण का मंत्र
तुलसी मीठे वचन सों, सुख उपजत चहुँ ओर ।
वशीकरन एक मंत्र है तजि दे वचन कठोर ।।
तुलसीदास जी कहते हैं, कि मधुर वाणी से चारों ओर सुख बढ़ता है और लोकप्रियता बढ़ती है । कठोर वाणी का त्याग करना ही सबसे बड़ा वशीकरण मंत्र है । - संकलित
बुधवार, 13 अगस्त 2008
पाखण्डीयों का ईश्वर भक्ति ढोंग महज राज साधन हेतु होता है
जब गलत लोग या आसुरी प्रवृत्ति के लोग भगवान या ईश्वर का नाम सुमरने लगें या उसकी दुहाई देंनें लगें तो चतुर मनुष्यों को सावधान हो जाना चाहिये । यह आभास हो जाना चाहिये कि खतरा आसन्न व सन्निकट ही है ।
कुप्रवृत्तियों, दूषित प्रवृत्तियों, रजोगुण व तमोगुण में लिप्त मनुष्यों व पाखण्डीयों द्वारा ईश्वर का नाम लेने व ईश्वरीय आस्था व श्रद्धा का ढोंग एवं पाखण्ड करने से ईश्वर भी घृणा का पात्र हो जाता है और लोग ईश्वर में कलंक देखने लगते हैं अत: अनुचित वर्ण व अनुचित मनुष्य के कानों में व जिह्वा पर ईश्वर का नाम मात्र भी नहीं आना चाहिये ऐसे लोगों के कानों में व मुंह में पिघला हुआ सीसा भर देना चाहिये । - संकलित चाणक्य नीति एवं वेदों से
शुक्रवार, 8 अगस्त 2008
दुनियां का सबसे कमजोर व्यक्ति कौन है
''चिल्ला कर और झल्ला कर बातें करना, बिना सलाह मांगे सलाह देना, किसी की मजबूरी में अपनी अहमियत दर्शाना और सिद्ध करना, ये कार्य दुनियां का सबसे कमजोर और असहाय व्यक्ति करता है, जो खुद को ताकतवर समझता है और जीवन भर बेवकूफ बनता है, घृणा का पात्र बन कर दर दर की ठोकरें खाता है ।'' – संकलित
मंगलवार, 5 अगस्त 2008
समस्याग्रस्त जीवन
जब आपके पास कोई पैसा नहीं होता है तो आपके लिए समस्या होती है भोजन का जुगाड़. जब आपके पास पैसा आ जाता है तो समस्या सेक्स की हो जाती है. जब आपके पास दोनों चीज़ें हो जाती हैं तो स्वास्थ्य समस्या हो जाती है. और जब सारी चीज़ें आपके पास होती हैं, तो आपको मृत्यु भय सताने लगता है. – जे पी डोनलेवी
सोमवार, 4 अगस्त 2008
काम, क्रोध और लोभ तीन नरक के द्वार
त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मन: ।
काम: क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत् ।।
काम, क्रोध तथा लोभ – ये तीन प्रकार के नरक के द्वार , आत्मा का नाश करने वाले अर्थात उसको अधोगति में ले जाने वाले हैं । अतएव इन तीनों का त्याग कर देना चाहिये । - श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 17 श्र्लोक 21
शुक्रवार, 18 जुलाई 2008
समय पर ही होते हैं कार्य, धैर्य धारण करना चाहिये
समय पाय तरूवर फलें, केतक सींचो नीर ।
कारज धीरें होत हैं, काहे होत अधीर ।।
समय पाकर अर्थात समय पूरा हो जाने के बाद ही वृक्ष फल देते हैं, चाहे उनकी कितनी भी सिंचाई क्यों न की जाये । इसी प्रकार हर कार्य अपनी प्रक्रिया व समय पूरा हो जाने के बाद ही पूर्ण होता है, इसलिये मनुष्य को धैर्य नहीं खोना चाहिये और समय पूर्ण होने तक निश्चिंत होकर प्रतीक्षा करना चाहिये । - संकलित (हिन्दी का प्रसिद्ध दोहा)
बुधवार, 9 जुलाई 2008
राजा राज्य और राज (भेद) का सम्बन्ध
राजा राज्य से होता है, राज्य राज (रहस्य) संधारण से होता है, जिस राज्य के राज (रहस्य) राज नहीं रहते, वह राज्य शीघ्र ही नष्ट हो जाता है, राजा राज्य और राज तभी तक सुरक्षित रहते हैं जब तक राजा के राज सिर्फ राजा तक रहें, जिस राजा के राज आम होकर गलियों तक पहुँच जायें उसके राज्य का भेदन उतना ही सहज व राज्य पर नियंत्रण आसान होता है, अत: राजा को चाहिये समस्त भेदों को सुरक्षित रखे – चाणक्य नीति
रविवार, 6 जुलाई 2008
पूजा उपसना व सेवा किसकी करना श्रेष्ठ है
जिसको पूजोगे वैसे ही बन जाओगे उसी में अंतत: समा जाओगे और खुद भी वही तथा वैसे ही बन जाओगे, अत: पूज्य का चयन सोच समझ कर करिये, तंत्र शास्त्र व पूजन शास्त्र का यह गूढ़ रहस्य है- देखें गीता का यह रहस्योद्घाटक श्र्लोक
यान्ति देवव्रता देवान्पितृन्यान्ति पितृव्रता: ।
भूतानि यान्ति भूतेज्या यान्ति मद्याजिनो अपि माम् ।।
देवताओं को पूजने वाले देवताओं को प्राप्त होते हैं, पितरों को पूजने वाले पितरों को प्राप्त होते हैं, भूतों को पूजने वाले भूतों को प्राप्त होते हैं और मेरा पूजन करने वाले भक्त मुझको ही प्राप्त होते हैं । इसलिये मेरे भक्तों का पुनर्जन्म नहीं होता । - भगवान श्रीकृष्ण, श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 9 श्र्लोक 25
सोमवार, 30 जून 2008
अनीति और छल करने वालों के लिये सर्वोत्तम नीति
अनीति पूर्वक छल करने वाले के विरूद्ध अनीति से छल करना सर्वोत्तम नीति है, तभी राज और दण्ड की श्रेष्ठता सिद्ध होती है, महाभारत के युद्ध में छल व अनीति से निहत्थे बालक को मारने वाले सात महारथीयों को श्रीकृष्ण ने इसी नीति के तहत दण्डित किया था । - श्रीकृष्ण नीति, संकलित
शुक्रवार, 27 जून 2008
भ्रष्टाचार आसुरी कुल के लोगों का पैतृक गुण है
भ्रष्ट आचरण या भ्रष्टाचार एक आसुरी गुण है जो मनुष्य को उसके संस्कारों वश स्वत: प्राप्त होता है, वर्ण संकर अर्थात जिनके कुल में दोष होकर कहीं कभी विदीर्णता होती है वह अपना असर दिखा कर मनुष्य को भ्रष्टाचार अर्थात दूसरे का धन या सम्पत्ति अनाधिकृत रूप से हरण करने या चुराने, या छीनने के लिये प्रेरित करती है, भ्रष्टों के पूर्वज आसुरी वंश के होने से यह गुण मनुष्य को पैतृक आसुरी सम्पदा के रूप में आ प्राप्त होता है – संकलित
बुधवार, 11 जून 2008
विद्यार्थियों के लिये वर्जित आठ चीजें
कामं क्रोधं तथा लोभं स्वादु श्रंगार कौतुके । अतिनिद्रातिसेवां च विद्यार्थी ह्यष्ट वर्जयेत् ।।
काम, क्रोध, लोभ, स्वाद, श्रंगार, कौतुक कार्य आनन्द, अति निद्रा, अति सेवा यह आठ कार्य विद्यार्थियों के लिये वर्जित हैं - संस्कृत का प्रसिद्ध श्र्लोक
रविवार, 8 जून 2008
देव दानव और मनुष्य में क्या अंतर है
मन के वश में रहने वाले अर्थात मन के अधीन रहने वाले मनुष्य हैं, पाश अर्थात बंधन के वशीभूत होकर उसके अधीन रहने वाले पशु हैं, देवत्व अर्थात सदा देते रहने की प्रकृति से वशीभूत होकर उसके अधीन रहने वाले देवता हैं, तमोगुण व्याप्त लिप्त सदा दूसरों की चीजों के हरण में प्रवृत रहने वाले राक्षस होते हैं
शुक्रवार, 6 जून 2008
राम भरोसे जो रहे पर्वत पे हू हरियाय
तुलसी विरवा बाग के सींचत में मुरझाय ।
राम भरोसे जे रहें, पर्वत पे हू हरियांय ।।
तुलसीदास जी कहते हैं कि कुछ ऐसे पौधे होते हैं जो बगीचे में रहकर नित्य पानी की सिंचाई होने के बाद भी मुरझा जाते हैं, जबकि राम जी के भरोसे रहने वाले पर्वतों पर उगने वाले पौधे जिनकी देख रेख और सिंचाई करने वाला कोई नहीं है वे हमेशा हरे भरे बने रहते हैं ।
गुरुवार, 5 जून 2008
दूध का दूध और पानी का पानी
चरन चोंच लोचन रंग्यो, चले मराली चाल ।
क्षीर नीर विवरन समय बक उघरत तेहि काल ।।
पैरों, चोंच और ऑंखों को रंगने से (मेक अप करने से) तथा हंस की मतवाली चाल चलने से भी बगुला कभी हंस नहीं बन सकता । जब दूध का दूध और पानी का पानी करने की बात आती है तो बगुले की पोल खुल जाती है । (हंस दूध और पानी मिला होने पर उसमें से दूध अलग कर देता है और पानी अलग) – संकलित
रविवार, 1 जून 2008
दुष्ट की संगति का असर
दुष्ट व्यक्ति की संगति भी बुरी है, दुष्ट की दुष्टता को सहन करना, दुष्ट का साथ देना, दुष्ट के कृत्यों को नजर अंदाज करना, दुष्टता के कृत्यों को देख कर भी ऑंखें बन्द रखना एक ही श्रेणी की दुष्टता में आते हैं, दुष्ट का साथ देने वाले उसी प्रकार स्वयं भी नष्ट हो जाते हैं, जिस प्रकार महा प्रतापी व महाविद्धान भीष्म पितामह और द्रोणाचार्य जैसे शूरवीरों का अंत हुआ । - महाभारत की सीख
शुक्रवार, 30 मई 2008
सत्यमेव जयते
लगातार झूठ बोलने से सत्य मिथ्या नहीं होता, सत्य के धुंधले होने का केवल आभास होता है अंत में सत्य ही विजयी होता है – संकलित
सोमवार, 26 मई 2008
महिलाओं पर कुदृष्टि न डालें
अनुज वधु, भगिनी सुत नारी, सुनु सठ कन्या सम ए चारी ।
इन्हहि कुदृष्टि बिलोकइ जोई, ताहि बधे कछु पाप न होई।।
छोटे भाई की पत्नी, बहिन, पुत्र वधु, पराई स्त्री ये चारों कन्या पुत्री के समान हैं, इन पर कुदृष्टि डालने वाले का वध करने से पाप नहीं लगता – किष्किन्धा काण्ड, रामचरित मानस, तुलसीदास
गुरुवार, 22 मई 2008
दौलत पद और सत्ता मिलने और खोने पर क्या होता है
दौलत की दो लात हैं, तुलसी निश्चय कीन ।
आवत में अंधा करें, जावत करे अधीन ।।
दौलत, संपत्ति और पद जब मिलते हैं, तो मनुष्य अंधा हो जाता है, और जब ये छिनते हैं तो मनुष्य पागल हो जाता है यानि उसका दास गुलाम होकर पगलाया फिरता है – तुलसीदास
बुधवार, 21 मई 2008
खतरनाक हैं चापलूस सलाहकार
मंत्री, गुरू, और वैद्य जो प्रिय बोलहिं भय आस ।
राज, धर्म, तन जीन करि होय बेग हि नास ।।
मंत्री (सलाहकार-परामर्श दाता), गुरू, और वैद्य (चिकित्सक) जब भयवश अर्थात आशंकित व आतंकित होकर प्रिय लगने वाला असत्य बोलने लगते हैं (चापलूसी करने लगते हैं) तो ऐसे राजा का राज्य, धर्म और शरीर तीनों ही तत्काल नष्ट हो जाते हैं
मंगलवार, 20 मई 2008
श्रेष्ठता, योग्यता और सनकी होने का रिश्ता
योग्य व श्रेष्ठ व्यक्ति अक्सर सनकी और उन्मादी होते हैं, कोई ऐब होना भी उनमें स्वाभाविक है, फिर भी वे लोगों के हृदय में विशिष्ट स्थान रखते हैं, किन्तु वे सनक, उन्माद तथा ऐब से दूर रहें तो वे ईश्वर तुल्य तो हो सकते हैं पर श्रेष्ठ और योग्य मनुष्य नहीं रहेगें – संकलित
सोमवार, 19 मई 2008
अभ्यास का महत्व
करत करत अभ्यास सों, जड़मति होय सुजान ।
रसरी आवत जात ते सिल पर परत निसान ।।
निरन्तर अभ्यास करने से मूर्खतम मनुष्य भी सुजान (चतुर और ज्ञानवान) हो जाता है, जैसे कुंयें के पाट (पत्थर) पर बार बार रस्सी रगड़ते रहने से उस पर भी रस्सी के निशान (खांचे) बन जाते हैं ।
शुक्रवार, 16 मई 2008
सर्वोत्तम न्याय और निर्णय क्या है
अच्छा व सर्वोत्तम निर्णय वह है, जिसकी अपील करने की इच्छा किसी भी पक्षकार में न हो, पारदर्शी न्याय और पक्षकारों को आत्मीयता से स्वीकार निर्णय ही आदर्श फैसला है – भारतीय न्याय का पुरातन सर्वमान्य सिद्धांत
गुरुवार, 15 मई 2008
किसके पास बैठें और किसके नहीं
उन लोगों के पास न बैठो और उन लोगों को अपने पास न बिठाओ जिनकी बातों से तुम्हारे चित्त को उद्विग्नता और अशान्ति होती है – स्वामी विवेकानन्द, राजयोग
सोमवार, 12 मई 2008
खुद की सुनो खुद ही करो
कोई कहता है ये करो, कोई कहता है वो करो, मैं कहता हूँ कि तुम वह करो जो तुम करना चाहते हो, नकारात्मक विचारों को अपने अंदर से उखाड़ फेंको, तुम ही हो जो सब कुछ कर सकते हो, स्वयं को जागृत करो, उठो खड़े हो जाओ और लग बैठो फिर किसी की न सुनो, नहीं नहीं कहने से तो सॉंप का विष भी असर नहीं करता, अपनी श्रेष्ठता को पहचानो – स्वामी विवेकानन्द
शनिवार, 10 मई 2008
भाग्य और लक्ष्मी किसके सेवक हैं
पुरूष सिंह जे उद्यमी, लक्ष्मी ताकि चेरि । अर्थात परिश्रमी मनुष्यों की लक्ष्मी दास बन कर सेवा करती है – चाणक्य
Fortune Favours only brave. – अँग्रेजी की कहावत
मंगलवार, 6 मई 2008
अति सदैव बुरी होती है
अति सर्वत्र वर्जयेत् । अति अर्थात अधिकता किसी भी चीज की सदैव ही बुरी होती है अत: किसी भी चीज की अति से बचना चाहिये – चाणक्य
Excess of every thing is bad. – अँग्रेजी की कहावत
सोमवार, 5 मई 2008
क्रोध जल्दी कौन करता है
छोटा बर्तन जल्दी गर्म होता है, कमजोर व्यक्ति जल्दी क्रोध प्रकट कर देता है – भारतीय नीति शास्त्र
A Short Pot is soon Hot. – अंग्रेजी कहावत
शुक्रवार, 2 मई 2008
मनुष्य के पतन और नष्ट होने का प्रथम लक्षण क्या है
विनाश काले विपरीत बुद्धि ।
अर्थात जिस मनुष्य के विनाश का वक्त या पतन का वक्त आ जाता है, उसकी बुद्धि भ्रमित होकर उल्टे ही उल्टे सारे कार्य करने लगती है और वह उचित को अनुचित और अनुचित को उचित की भांति व्यवहृत करने लगता है – महाभारत
ताकों प्रभु दारूण दुख देंईं । ताकी मति पहलेईं हर लेंईं ।।
गोस्वामी तुलसीदास जी राम चरित मानस में लेख करते हैं कि प्रभु जिसको दारूण दुख देना चाहते हैं तो सबसे पहले वे उसकी बुद्धि का हरण कर लेते हैं जिससे वह सारे के सारे कार्य उल्टे ही उल्टे करने लगता है और अंतत: दारूण दुख पा कर पूर्णत: नष्ट हो जाता है । - तुलसीदास, रामचरित मानस
बुधवार, 30 अप्रैल 2008
आपने क्या खोया क्या पाया
Money is lost nothing is lost, Health is lost something is lost, Character is lost everything is lost.
आपने धन गँवा दिया समझिये कुछ नहीं खोया, आपने स्वास्थ्य गंवाया समझिये कुछ खो दिया, आपने अपना चरित्र गंवाया समझिये आपका सब कुछ खो गया नष्ट हो गया । - अँग्रेजी की एक कहावत
सोमवार, 28 अप्रैल 2008
कलयुगी साधु सन्त कैसे और उनके क्या असर हैं
तपसी धनवन्त दरिद्र गृही । कलि कौतुक तात न जात कही ।।
कलि बारहिं बार दुकाल परे । बिन अन्न दुखी सब लोग मरे ।।
अर्थात गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस में लेख किया है कि कलयुग में तपस्वी और साधु सन्त तो धनवान होंगे (हेलीकॉप्टरों से यात्रा करेंगे, राजसी भोग विलास का सुख उपभोग कर आनन्द उठायेंगें ) और गृहस्थ मनुष्य बेचारे दरिद्र होंगे । कलयुग में बार बार भीषण अकाल दुकाल पड़ेंगे, बिना अन्न (अनाज) के सब लोग दुखी हो हो कर मरेंगें । कलयुग में ऐसी ऐसी चित्र विचित्र लीलायें होंगीं कि जिनका वर्णन करना बड़ा ही मुश्किल है । - तुलसीदास, रामचरित मानस (उत्तरकाण्ड) तप व साधना से साधन की प्राप्ति हो सकती है, किन्तु साधन से साधना व तप प्राप्त नहीं हो सकते – बाबा बालकदास
गुरुवार, 24 अप्रैल 2008
अपने पराये और अच्छे बुरे की परीक्षा कब और कैसे होती है
धीरज धरम मित्र और नारी, आपदकाल परखिये चारी ।।
धैर्य अर्थात धीरज, धर्म, मित्र और नारी की परीक्षा विपत्ति या आफत के समय करनी चाहिये – तुलसीदास, रामचरित मानस
रहिमन विपदा हू भली जो थोरे दिन होय । भलो बुरो सब आपुनो, जान परत सब कोय ।। रहीम जी कहते हैं कि विपत्ति यदि थोड़े समय की आये तो बहुत अच्छी होती है, इसमें अपने पराये और भले बुरे सबकी पहचान हो जाती है – रहीम
बुधवार, 23 अप्रैल 2008
मनुष्य का उत्थान व पतन कैसे होता है
जब मनुष्य अपने पूर्वजों और पितृगण व बुजुर्गों को बुरा भला कह कर गालियां देने लगता है, तो समझिये उसने पतन के रास्ते पर पहला कदम रख दिया ऐसे मनुष्य का पतन सुनिश्चित है, और जब मनुष्य स्वयं अपने आप में खोट देखने लगता है स्वयं को बुरा भला कह कर गालियां देना शुरू कर देता है तो समझिये उसने उन्नति व उत्थान के रास्ते पर पहला कदम रख दिया है, ऐसे मनुष्य की उन्नति व उत्थान सुनिश्पित है – स्वामी विवेकानन्द
मंगलवार, 22 अप्रैल 2008
भगवान किस मंदिर में मिलेंगे
हरि व्यापक सर्वत्र समाना । प्रेम सों प्रकट होंहिं मैं जाना ।।
भगवान तो सभी जगह समान रूप से व्याप्त हैं, वे केवल प्रेम से ही कहीं भी प्रकट किये जा सकते हैं - गोस्वामी तुलसीदास, रामचरित मानस
मंदिर तो भगवान का कैदखाना है, गरीब की झोंपड़ी और भक्त का हृदय ही भगवान का घर अर्थात मंदिर है उनकी उपस्थिति तो जगत के कण कण में है – संकलित
सोमवार, 21 अप्रैल 2008
धर्म और अधर्म में क्या फर्क है
परहित सरिस धरम नहिं भाई । परपीड़ा सम नहिं अधमाई ।।
दूसरों का भला करने से बड़ा कोई धर्म नहीं है और दूसरों को पीड़ा पहुँचाने से बड़ा अधर्म नहीं है – गोस्वामी तुलसीदास, रामचरित मानस
रविवार, 20 अप्रैल 2008
घर में धन बढ़ने पर क्या करें
जो जल बाढ़े नाव में और घर में बाढ़े दाम । दोऊ हाथ उलीचिये यही सयानो काम ।।
यदि नाव में जल बढ़ जाये, और घर में धन बढ़ जाये तो दोनों हाथों से उसे उलीचना शुरू कर देना चाहिये, चतुर मनुष्यों के यही लक्षण हैं । - घाघ भड्डरी की कहावत
शनिवार, 19 अप्रैल 2008
क्षमा और दण्ड में अधिक कठिन क्या है
दूसरों को दण्ड देना सहज है, किन्तु उन्हें क्षमा करना और उनकी भूल सुधारना अत्यधिक कठिन कार्य है – भगवान महावीर स्वामी
बुधवार, 16 अप्रैल 2008
मूर्ख को उपदेश देने का लाभ
उपदेशो हि मूर्खाणां प्रकोपाय न शान्तये । पय: पानं भुजंगानां केवलं विष वर्धनम् ।।
मूर्ख व्यक्ति को उपदेश देने से उसका प्रकोप शान्त नहीं होता, जिस प्रकार सर्प को दूध पिलाने से उसका विष कम नहीं होता केवल उसका विष बढ़ता ही है – संस्कृत का प्रसिद्ध श्र्लोक
मंगलवार, 15 अप्रैल 2008
लक्ष्मी किसके पास रहती है
लक्ष्मी को पाना है तो या तो उल्लू बनना होगा या प्रभु विष्णु, लक्ष्मी केवल इन्हीं दोनों के पास ही रहती है । एक की सवारी करती है और एक की सेवा । जितने अंश तक उल्लू या विष्णु के गुण तुम्हारे भीतर होंगे, उतने ही अंश तक लक्ष्मी तुम्हारे पास रहेगी – जेम्स एलन
रविवार, 13 अप्रैल 2008
पंच विकार कौन से हैं
काम बुद्धि का हरण करता है, क्रोध विवेक का हरण करता है, अहंकार यश व प्रभाव का हरण करता है, मद लोकप्रियता का हरण करता है, लोभ स्वतंत्रता का हरण करता है, मोह राज्य व लोक का हरण कर लेता है, जिसमें इन पॉंचो की ही उपस्थिति हो उसका तो कहना ही क्या पतन सुनिश्चित तो है ही उसे इस लोक तो क्या पाताल में भी स्थान नहीं मिलता – श्रीमद्भगवद
शनिवार, 12 अप्रैल 2008
यथा भोजन, तथा बुद्धि, यथा बुद्धि तथा कर्म, यथा कर्म तथा फल
भोजन तीन प्रकार का होता है, प्रत्येक मनुष्य को अपनी रूचि व संस्कारों के अनुसार यह सतोगुणी, रजोगुणी व तमोगुणी भोजन प्रिय होता है, जैसा मनुष्य भोजन करता है उसी के अनुसार उसकी बुद्धि हो जाती है, बुद्धि के अनुसार ही उसमें वैसी ही चेतना व ज्ञान उत्पन्न हो जाता है । ज्ञान से उसके कर्म का निर्धारण होता है, और वह फिर जैसा कर्म करता है वैसा ही उसे फल प्राप्त होता है – भगवान श्रीकृष्ण श्रीमद्भगवद्गीता
शुक्रवार, 11 अप्रैल 2008
समस्याओं के निदान का सर्वोत्तम तरीका
आगत विगत का भार एक साथ उठा कर चलने से अच्छे से अच्छा पराक्रमी भी लड़खड़ा जाता है, मनुष्य को दूरस्थ व संभावित संकटों एवं परेशानी की चिन्ता करने के बजाय आसन्न व सन्निकट कठिनाईयों व समस्याओं के निदान हेतु तत्पर होना चाहिये – डेल कार्नेगी
बुधवार, 9 अप्रैल 2008
मनुष्य के उत्थान व पतन की सीमायें कितनी हैं
प्रत्येक मनुष्य एक वृत्त पर चलता है, यह वृत्त सीधा खड़ा होता है और हर मनुष्य के लिये इसका व्यास अलग अलग है, जिस पर चलकर वह एक निश्चित अवस्था या बिन्दु से अधिक नीचे नहीं जा सकता, इसी प्रकार एक निश्चित स्थिति या बिन्दु से अधिक ऊपर वह नहीं जा सकता, इन बिन्दुओं से आगे बढ़ने पर दूसरी अवस्था की ओर मनुष्य स्वत: बढ़ जाता है, इसमें पीछे की ओर चलना संभव नहीं, ये बिन्दु ही मनुष्य की उपलब्धियों व पतन का निर्धारण करते हैं – स्वामी विवेकानन्द
मंगलवार, 8 अप्रैल 2008
विश्वास, जुल्म, डर और भय के भेद
चूंकि एक राजनीतिज्ञ कभी भी अपने कहे पर विश्वास नहीं करता, उसे आश्चर्य होता है जब दूसरे उस पर विश्वास करते हैं – चार्ल्स द गाल
जालिम का नामोनिशां मिट जाता है, पर जुल्म रह जाता है- महात्मा गांधी
डर सदैव अज्ञानता से पैदा होता है – एमर्सन
कांटों को मुरझाने का डर नहीं सताता.- चाणक्य
सोमवार, 7 अप्रैल 2008
उन्नति का पथ और अचेत जागरण
सूर्य की तरफ मुँह करो और तुम्हारी छाया तुम्हारे पीछे होगी – माओरी
जो व्यक्ति सोने का बहाना कर रहा है उसे आप उठा नहीं सकते – नवाजो
रविवार, 6 अप्रैल 2008
दोरंगे व्यवहार के लक्षण क्या हैं
मेरे घर में मेरा ही हुक्म चलता है बस, निर्णय मेरी पत्नी लेती है. – वूडी एलन
मुट्ठियां बाँध कर आप किसी से हाथ नहीं मिला सकते – इंदिरा गांधी
शनिवार, 5 अप्रैल 2008
किसी को व्यस्त कैसे रखा जाये
किसी व्यक्ति को एक मछली दे दो तो उसका पेट दिन भर के लिए भर जाएगा. उसे इंटरनेट चलाना सिखा दो तो वह हफ़्तों आपको परेशान नहीं करेगा. – एनन
शुक्रवार, 4 अप्रैल 2008
कार्य की सफलता हेतु श्रेय किसको
यदि आप इस बात की चिंता न करें कि आपके काम का श्रेय किसे मिलने वाला है तो आप आश्चर्यजनक कार्य कर सकते हैं – हैरी एस. ट्रूमेन
मंगलवार, 1 अप्रैल 2008
सही किताब कौनसी है
सही किताब वह नहीं है जिसे हम पढ़ते हैं – सही किताब वह है जो हमें पढ़ता है. - डबल्यू एच ऑदेन
सोमवार, 31 मार्च 2008
अवगुण भी कब गुण बन जाता है
60. यदि राजा किसी अवगुण को पसंद करने लगे तो वह गुण हो जाता है – शेख़ सादी
शनिवार, 29 मार्च 2008
अपना कार्य स्वयं ही करो
खेती, पाती, बीनती, औ घोड़े की तंग । अपने हाथ संवारिये चाहे लाख लोग हो संग ।। खेती करना, पत्र लिखना और पढ़ना, तथा घोड़ा या जिस वाहन पर सवारी करनी हो उसकी जॉंच और तैयारी मनुष्य को स्वयं ही खुद करना चाहिये भले ही लाखों लोग साथ हों और अनेकों सेवक हों, वरना मनुष्य का नुकसान तय शुदा है । - घाघ भड्डरी की कहावत