परहित सरिस धरम नहिं भाई । परपीड़ा सम नहिं अधमाई ।।
दूसरों का भला करने से बड़ा कोई धर्म नहीं है और दूसरों को पीड़ा पहुँचाने से बड़ा अधर्म नहीं है – गोस्वामी तुलसीदास, रामचरित मानस
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