भ्रष्ट आचरण या भ्रष्टाचार एक आसुरी गुण है जो मनुष्य को उसके संस्कारों वश स्वत: प्राप्त होता है, वर्ण संकर अर्थात जिनके कुल में दोष होकर कहीं कभी विदीर्णता होती है वह अपना असर दिखा कर मनुष्य को भ्रष्टाचार अर्थात दूसरे का धन या सम्पत्ति अनाधिकृत रूप से हरण करने या चुराने, या छीनने के लिये प्रेरित करती है, भ्रष्टों के पूर्वज आसुरी वंश के होने से यह गुण मनुष्य को पैतृक आसुरी सम्पदा के रूप में आ प्राप्त होता है – संकलित
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2 वर्ष पहले
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