लगातार झूठ बोलने से सत्य मिथ्या नहीं होता, सत्य के धुंधले होने का केवल आभास होता है अंत में सत्य ही विजयी होता है – संकलित
शुक्रवार, 30 मई 2008
सोमवार, 26 मई 2008
महिलाओं पर कुदृष्टि न डालें
अनुज वधु, भगिनी सुत नारी, सुनु सठ कन्या सम ए चारी ।
इन्हहि कुदृष्टि बिलोकइ जोई, ताहि बधे कछु पाप न होई।।
छोटे भाई की पत्नी, बहिन, पुत्र वधु, पराई स्त्री ये चारों कन्या पुत्री के समान हैं, इन पर कुदृष्टि डालने वाले का वध करने से पाप नहीं लगता – किष्किन्धा काण्ड, रामचरित मानस, तुलसीदास
गुरुवार, 22 मई 2008
दौलत पद और सत्ता मिलने और खोने पर क्या होता है
दौलत की दो लात हैं, तुलसी निश्चय कीन ।
आवत में अंधा करें, जावत करे अधीन ।।
दौलत, संपत्ति और पद जब मिलते हैं, तो मनुष्य अंधा हो जाता है, और जब ये छिनते हैं तो मनुष्य पागल हो जाता है यानि उसका दास गुलाम होकर पगलाया फिरता है – तुलसीदास
बुधवार, 21 मई 2008
खतरनाक हैं चापलूस सलाहकार
मंत्री, गुरू, और वैद्य जो प्रिय बोलहिं भय आस ।
राज, धर्म, तन जीन करि होय बेग हि नास ।।
मंत्री (सलाहकार-परामर्श दाता), गुरू, और वैद्य (चिकित्सक) जब भयवश अर्थात आशंकित व आतंकित होकर प्रिय लगने वाला असत्य बोलने लगते हैं (चापलूसी करने लगते हैं) तो ऐसे राजा का राज्य, धर्म और शरीर तीनों ही तत्काल नष्ट हो जाते हैं
मंगलवार, 20 मई 2008
श्रेष्ठता, योग्यता और सनकी होने का रिश्ता
योग्य व श्रेष्ठ व्यक्ति अक्सर सनकी और उन्मादी होते हैं, कोई ऐब होना भी उनमें स्वाभाविक है, फिर भी वे लोगों के हृदय में विशिष्ट स्थान रखते हैं, किन्तु वे सनक, उन्माद तथा ऐब से दूर रहें तो वे ईश्वर तुल्य तो हो सकते हैं पर श्रेष्ठ और योग्य मनुष्य नहीं रहेगें – संकलित
सोमवार, 19 मई 2008
अभ्यास का महत्व
करत करत अभ्यास सों, जड़मति होय सुजान ।
रसरी आवत जात ते सिल पर परत निसान ।।
निरन्तर अभ्यास करने से मूर्खतम मनुष्य भी सुजान (चतुर और ज्ञानवान) हो जाता है, जैसे कुंयें के पाट (पत्थर) पर बार बार रस्सी रगड़ते रहने से उस पर भी रस्सी के निशान (खांचे) बन जाते हैं ।
शुक्रवार, 16 मई 2008
सर्वोत्तम न्याय और निर्णय क्या है
अच्छा व सर्वोत्तम निर्णय वह है, जिसकी अपील करने की इच्छा किसी भी पक्षकार में न हो, पारदर्शी न्याय और पक्षकारों को आत्मीयता से स्वीकार निर्णय ही आदर्श फैसला है – भारतीय न्याय का पुरातन सर्वमान्य सिद्धांत
गुरुवार, 15 मई 2008
किसके पास बैठें और किसके नहीं
उन लोगों के पास न बैठो और उन लोगों को अपने पास न बिठाओ जिनकी बातों से तुम्हारे चित्त को उद्विग्नता और अशान्ति होती है – स्वामी विवेकानन्द, राजयोग
सोमवार, 12 मई 2008
खुद की सुनो खुद ही करो
कोई कहता है ये करो, कोई कहता है वो करो, मैं कहता हूँ कि तुम वह करो जो तुम करना चाहते हो, नकारात्मक विचारों को अपने अंदर से उखाड़ फेंको, तुम ही हो जो सब कुछ कर सकते हो, स्वयं को जागृत करो, उठो खड़े हो जाओ और लग बैठो फिर किसी की न सुनो, नहीं नहीं कहने से तो सॉंप का विष भी असर नहीं करता, अपनी श्रेष्ठता को पहचानो – स्वामी विवेकानन्द
शनिवार, 10 मई 2008
भाग्य और लक्ष्मी किसके सेवक हैं
पुरूष सिंह जे उद्यमी, लक्ष्मी ताकि चेरि । अर्थात परिश्रमी मनुष्यों की लक्ष्मी दास बन कर सेवा करती है – चाणक्य
Fortune Favours only brave. – अँग्रेजी की कहावत
मंगलवार, 6 मई 2008
अति सदैव बुरी होती है
अति सर्वत्र वर्जयेत् । अति अर्थात अधिकता किसी भी चीज की सदैव ही बुरी होती है अत: किसी भी चीज की अति से बचना चाहिये – चाणक्य
Excess of every thing is bad. – अँग्रेजी की कहावत
सोमवार, 5 मई 2008
क्रोध जल्दी कौन करता है
छोटा बर्तन जल्दी गर्म होता है, कमजोर व्यक्ति जल्दी क्रोध प्रकट कर देता है – भारतीय नीति शास्त्र
A Short Pot is soon Hot. – अंग्रेजी कहावत
शुक्रवार, 2 मई 2008
मनुष्य के पतन और नष्ट होने का प्रथम लक्षण क्या है
विनाश काले विपरीत बुद्धि ।
अर्थात जिस मनुष्य के विनाश का वक्त या पतन का वक्त आ जाता है, उसकी बुद्धि भ्रमित होकर उल्टे ही उल्टे सारे कार्य करने लगती है और वह उचित को अनुचित और अनुचित को उचित की भांति व्यवहृत करने लगता है – महाभारत
ताकों प्रभु दारूण दुख देंईं । ताकी मति पहलेईं हर लेंईं ।।
गोस्वामी तुलसीदास जी राम चरित मानस में लेख करते हैं कि प्रभु जिसको दारूण दुख देना चाहते हैं तो सबसे पहले वे उसकी बुद्धि का हरण कर लेते हैं जिससे वह सारे के सारे कार्य उल्टे ही उल्टे करने लगता है और अंतत: दारूण दुख पा कर पूर्णत: नष्ट हो जाता है । - तुलसीदास, रामचरित मानस