सोमवार, 21 अप्रैल 2008

धर्म और अधर्म में क्‍या फर्क है

परहित सरिस धरम नहिं भाई । परपीड़ा सम नहिं अधमाई ।।

दूसरों का भला करने से बड़ा कोई धर्म नहीं है और दूसरों को पीड़ा पहुँचाने से बड़ा अधर्म नहीं है गोस्‍वामी तुलसीदास, रामचरित मानस

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