मंगलवार, 6 अक्तूबर 2020

जो गर मुकाबिल तोप हो सामने ... अखबार निकालो

 बड़ी पुरानी और प्रसिद्ध कहावत है , अंग्रेजी हुकूमत के दौर में शुरू हुई ये कहावत अब मुहावरा बन गई है , अंग्रेज चले गये मगर अपनी औॅलादें और नाती पोते भारत में छोड गये , सभी अंग्रेजी कानून जो अंग्रेजों ने बनाये और चलाये जिससे वे भारतवासियों को गुलाम बना कर रख सकें और उन पर हुकूमत कर सकेंगें , इन अंग्रेजी कानूनों के खिलाफ देश में स्वतंत्रता संग्राम हुआ , जिसे भारत की आजादी का आंदोलन कहा जाता है । 

इन कानूनों का विरोध करते हुये पंजाब केसरी के संस्थापक लाला लाजपत राय , बाल गंगाधर तिलक  जैसे लोग शहीद हो गये , जवाहर लाल नेहरू , महात्मा गांधी आदि ने अंग्रेजों के कानूनों की प्रतियां जलाई और कानूनों का विरोध खुली मुखाफलत के साथ किया , मगर भारत को आजाद हुये 73 साल गुजर गये , 74 वां साल चल रहा है , मगर अंग्रेजों के कानून जस के तस चल रहे हैं । प्रश्न है कि फिर भारत आजाद हुआ ही कहां  .... 

किसी संविधान में या किसी कानून में कुछ संशोधन करने का मतलब है , फटी चादर में थिगड़े या चीथड़े लगाना , भारत के संविधान में 150 से अधिक संशोधन हो चुके हैं , मतलब साफ है , थेगड़े चीथड़े लगा संविधान , बदलना या बदला जाना मांग रहा है । अटल बिहारी बाजपेयी इस काम को करना चाह रहे थे , उन्होंने बाकायदा संविधान पुनर्गठन समिति गठित करना शुरू कर दी थी मगर भारत के स्वार्थी नेताओं को यह रास नहीं आया और इसे ठंडे बस्ते में फेंक दिया , तब से अब तक यह ठंडे बस्ते में और देश अंधे कुयें की राह पर है । 

केवल संविधान ही नहीं तमाम मुख्य कानूनों का यही आलम है , चाहे पुलिस एक्ट 1861  हो , आई पी सी यानि भारतीय दंड संहिता 1860 हो या प्रेस और बुक्स रजिस्ट्रेशन एक्ट 1867 हो ..... 

इसीलिये आज तक प्रासंगिक है ....... है अगर तोप मुकाबिल सामने तो ..... अखबार निकालो            

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