सोमवार, 30 जून 2008

अनीति और छल करने वालों के लिये सर्वोत्‍तम नीति

अनीति पूर्वक छल करने वाले के विरूद्ध अनीति से छल करना सर्वोत्‍तम नीति है, तभी राज और दण्‍ड की श्रेष्‍ठता सिद्ध होती है, महाभारत के युद्ध में छल व अनीति से निहत्‍थे बालक को मारने वाले सात महारथीयों को श्रीकृष्‍ण ने इसी नीति के तहत दण्डित किया था । - श्रीकृष्‍ण नीति, संकलित  

शुक्रवार, 27 जून 2008

भ्रष्‍टाचार आसुरी कुल के लोगों का पैतृक गुण है

भ्रष्‍ट आचरण या भ्रष्‍टाचार एक आसुरी गुण है जो मनुष्‍य को उसके संस्‍कारों वश स्‍वत: प्राप्‍त होता है, वर्ण संकर अर्थात जिनके कुल में दोष होकर कहीं कभी विदीर्णता होती है वह अपना असर दिखा कर मनुष्‍य को भ्रष्‍टाचार अर्थात दूसरे का धन या सम्‍पत्ति अनाधिकृत रूप से हरण करने या चुराने, या छीनने के लिये प्रेरित करती है, भ्रष्‍टों के पूर्वज आसुरी वंश के होने से यह गुण मनुष्‍य को पैतृक आसुरी सम्‍पदा के रूप में आ प्राप्‍त होता है संकलित   

 

बुधवार, 11 जून 2008

विद्यार्थियों के लिये वर्जित आठ चीजें

कामं क्रोधं तथा लोभं स्‍वादु श्रंगार कौतुके । अतिनिद्रातिसेवां च विद्यार्थी ह्यष्‍ट वर्जयेत् ।।

काम, क्रोध, लोभ, स्‍वाद, श्रंगार, कौतुक कार्य आनन्‍द, अति निद्रा, अति सेवा यह आठ कार्य विद्यार्थियों के लिये वर्जित हैं - संस्‍कृत का प्रसिद्ध श्र्लोक 

 

रविवार, 8 जून 2008

देव दानव और मनुष्‍य में क्‍या अंतर है

मन के वश में रहने वाले अर्थात मन के अधीन रहने वाले मनुष्‍य हैं, पाश अर्थात बंधन के वशीभूत होकर उसके अधीन रहने वाले पशु हैं, देवत्‍व अर्थात सदा देते रहने की प्रकृति से वशीभूत होकर उसके अधीन रहने वाले देवता हैं, तमोगुण व्‍याप्‍त लिप्‍त सदा दूसरों की चीजों के हरण में प्रवृत रहने वाले राक्षस होते हैं  

 

शुक्रवार, 6 जून 2008

राम भरोसे जो रहे पर्वत पे हू हरियाय

तुलसी विरवा बाग के सींचत में मुरझाय ।

राम भरोसे जे रहें, पर्वत पे हू हरियांय ।।

तुलसीदास जी कहते हैं कि कुछ ऐसे पौधे होते हैं जो बगीचे में रहकर नित्‍य पानी की सिंचाई होने के बाद भी मुरझा जाते हैं, जबकि राम जी के भरोसे रहने वाले पर्वतों पर उगने वाले पौधे जिनकी देख रेख और सिंचाई करने वाला कोई नहीं है वे हमेशा हरे भरे बने रहते हैं ।  

 

गुरुवार, 5 जून 2008

दूध का दूध और पानी का पानी

चरन चोंच लोचन रंग्‍यो, चले मराली चाल ।

क्षीर नीर विवरन समय बक उघरत तेहि काल ।।

पैरों, चोंच और ऑंखों को रंगने से (मेक अप करने से) तथा हंस की मतवाली चाल चलने से भी बगुला कभी हंस नहीं बन सकता । जब दूध का दूध और पानी का पानी करने की बात आती है तो बगुले की पोल खुल जाती है । (हंस दूध और पानी मिला होने पर उसमें से दूध अलग कर देता है और पानी अलग) संकलित

रविवार, 1 जून 2008

दुष्‍ट की संगति का असर

दुष्‍ट व्‍यक्ति की संगति भी बुरी है, दुष्‍ट की दुष्‍टता को सहन करना, दुष्‍ट का साथ देना, दुष्‍ट के कृत्‍यों को नजर अंदाज करना, दुष्‍टता के कृत्‍यों को देख कर भी ऑंखें बन्‍द रखना एक ही श्रेणी की दुष्‍टता में आते हैं, दुष्‍ट का साथ देने वाले उसी प्रकार स्‍वयं भी नष्‍ट हो जाते हैं, जिस प्रकार महा प्रतापी व महाविद्धान भीष्‍म पितामह और द्रोणाचार्य जैसे शूरवीरों का अंत हुआ । - महाभारत की सीख