बुधवार, 23 सितंबर 2020

आइंस्टीन का ऊर्जा संरक्षण का सूत्र गीता का एक श्लोक है

 श्रीमद भगवद गीता का श्लोक 

नैनं छिंदंति शस्त्राणि , नैनं दह्यति पावक: 

न चैनं क्लैदन्त्यापि न शोष्यति मारूत: 

आत्मा को ( ऊर्जा को ) न कोई नष्ट कर सकता है , न उत्पन्न ( पैदा ) कर सकता है , न  शस्त्र इसे काट सकता है, न आग इसे जला सकती है , न जल इसे भिगा सकता है और न वायु इसे सुखा सकता है । आत्मा उसी तरह पुराने जजर्र शरीर को त्याग कर नवीन देह धारण करता है जिस प्रकार मनुष्य वस्त्र बदलता है , अत: आत्मा केवल शरीर बदलता है , आइंसटीन के सूत्र के अनुसार ऊर्जा का केवल रूपांतरण मात्र किया जा सकता है , ऊर्जा को न तो नष्ट किया जा सकता है , न पैदा किया जा सकता है ।  

आइंसटीन के इस सूत्र के आधार पर ही परमाणु ऊर्जा का सारा संसार टिका हुआ है E=MC(Square) इस एक सूत्र पर परमाणु बम से लेकर परमाणु ऊर्जा के विशाल संयंत्र टिके और बने हैं । 

भगवान श्रीकृष्ण ने 5120 साल पहले ही यही सूत्र अर्जुन को कुरूक्षेत्र के मैदान में सुनाया था । 

उल्लेखनीय है कि आइंसटीन ईश्वर के और भगवान के अंधभक्त थे , और विशेष रूप से श्री कृष्ण के , आइंसटीन ने स्वयं अपनी आत्मकथा ( जीवनी या आटोबायो ग्राफी में यह उल्लेख किया है , और अपने हर आविष्कार के बाद यही कहा कि वाकई भगवान है जो ऊपर बैठा इस कुदरत को संचालित कर रहा है । भगवान श्री कृष्ण ने आत्मा को अजर अमर और अनश्वर सनातन कहा तो आंइंसटीन ने यही शब्द ऊर्जा के लिये कहे । आइंसटीन का ऊर्जा संरक्षण का मूल सिद्धांत निम्नत: अंग्रेजी में है । 

Energy can not produced nor be destroy , it can only transforms , one form to another form . 

Presented and Invented By : Narendra Singh Tomar "Anand" Advocate. 

शोध अनुसंधान एवं प्रस्तुति : नरेन्द्र सिंह तोमर '' आनंद'' एडवोकेट 

 

कोई टिप्पणी नहीं: