यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा शास्त्रं तस्य करांति किं
लोचनाभ्यां विहीनस्य दर्पण: किं करिष्यिति
जिस मनुष्य में स्वयं का विवेक, चेतना एवं बोध नहीं है, उसके लिये शास्त्र क्या कर सकता है । ऑंखों से हीन अर्थात अन्धे मनुष्य के लिये दर्पण क्या कर सकता है ।
1 टिप्पणी:
सही कहा है आपने...गधे के लिये गुलाबजामुन की क्या वकत।
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