रविवार, 26 अप्रैल 2015

धीरज, धर्म , मित्र और नारी की परीक्षा आपत्त‍ि व संकट के समय ही होती है

धीरज धर्म मित्र और नारी । आपद काल परखीये चारी ।।
धीरज यानि धैर्य, धर्म यानि धर्म के चारों चरण एवं सिद्धांतों की, मित्र की एवं नारी की परीक्षा सदैव ही आपत्त‍ि व संकट के समय होती है , आपत्त‍ि व संकट के समय इनमें से जो भी आपका साथ छोड़ दे , निश्चि‍त ही वह कभी भी आपका नहीं था , नहीं है और न कभी होगा - श्री राम चरित मानस

बुधवार, 8 अप्रैल 2015

पहले अपनी कुल,जाति के व मॉं बाप के सगे व वफादार बनिये, तब वसुधैव कुटुम्बकम की बात करिये

पहले अपने मॉं बाप के सगे बनो, वफादार बनो, फिर अपने परिवार के, फिर अपने कुटुम्ब के, फिर अपने कुल व जाति के , फिर अपने गॉंव के सगे और वफादार बनो, उसके बाद अपने क्षेत्र के , तब जाकर प्रदेश के सगे बनो वफादार बनो, उसके बाद देश के , तब फिर जाकर सारे विश्व के सगे और वफादार बनकर विश्व को अपाना कुटुम्ब कहो तब ''वसुधैव कुटुम्बकम'' कहलाता है , जो इन सबका गद्दार है , इनका सगा नहीं वह पूरे विश्व में किसी का भी सगा और वफादार नहीं हो सकता , कुल मिलाकर जो अपने मॉं बाप गुरू, घर परिवार गॉंव , जाति के प्रति वफादार और सगा नहीं वह निश्च‍ित ही दुनिया का सबसे बड़ा गद्दार और दगाबाज होता है , शास्त्र एवं भारत के संस्कार इसलिये जातिवाद को कभी बुरा नहीं मानते, आप अपनी जाति के प्रति वफादार हैं , इसका अर्थ यह नहीं कि आप अन्य किसी जाति के निन्दक या आलोचक हैं या उसे नीचा दिखाते हैं या उसके प्रति गद्दार हैं , गद्दारी और वफादारी, विश्वास व विश्वासघात केवल इन्हीं ऊपर लिखे लोगों के प्रति ही संभव है , पराये के प्रति नहीं - शुभ प्रभात मित्रवर .. जय श्री कृष्ण ... जय जय श्री राधे

रविवार, 5 अप्रैल 2015

जो यज्ञ द्वारा देवों की रक्षा करता है, देव पुष्ट होकर उसकी रक्षा करते हैं

श्रीमद्भगवद गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि , प्रजापति ने मनुष्य व देवों के पारस्परिक कल्याणार्थ याों की रचना की, मनुष्य यज्ञ द्वारा देवों को पुष्ट बनाता है और देव पुष्ट होकर मनुष्य को पुष्ट, सुखी, समृद्ध बना कर सदैव उसकी रक्षा करते हैं, हवन से निकली हव्य आहूति युक्त‍ धुआं ही देवों का भोजन व शक्त‍ि है , उसी से उन्हें पुष्टता, शक्त‍ि  व सौम्यता प्राप्त होती है, बिना यज्ञ के देव और रक्षक क्षीण हीन व कमजोर , शक्त‍िहीन व श्री हीन हो जाते हैं , अत: यज्ञ नियमित रूप से देव निमित्त करना चाहिये ।   - भगवान श्री कृष्ण , श्रीमद्भगवद गीता

रविवार, 29 मार्च 2015

तप, दान और कर्म के प्रकार

मन, वाचा और कर्म से अर्थात मनुष्य मन से वाणी से और शरीर के कर्म से तीन प्रकार के यज्ञ, दान, तप , ज्ञान , कर्मादि करता हैं । सतोगुणी, रजोगुणी और तमोगुणी । यह सब ही तीन प्रकार के होते हैं अत: इन सबकी उत्तमता व निकृष्टता इनके गुणों भेद से बदल जाती है - भगवान श्री कृष्ण , श्रीमद्भगवद गीता