बुधवार, 20 अगस्त 2008

बुद्धि और विवेक के बगैर ज्ञान बेकार है, पढ़ना के साथ गुनना भी जरूरी

ज्ञान मृत होता है, उसमें न तो स्‍वयं की चेतना होती है न स्‍वयं सक्रियता, उसे चेतन होने के लिये बुद्धि की आवश्‍कता होती है, और सक्रिय होने के लिये बुद्धि से संयोग की, लेकिन ज्ञान का सदुपयोग और सुसक्रियता हेतु विवेक की आवश्‍यकता होती है, विवेक ही उचित अनुचित में फर्क करता है, प्रज्ञा बुद्धि को स्थिर करती है । पुस्‍तक में बन्‍द पड़ा ज्ञान मृत ही रहेगा यदि उसे बुद्धि व विवेक का सामर्थ्‍य, सहयोग व सक्रियता न मिले । चतुर मनुष्‍य बुद्धि की साधना कर विवेक से ज्ञान का सदुपयोग करते हैं, मूर्ख मनुष्‍य ज्ञानी होकर भी बुद्धि के अभाव में उसका उपयोग नहीं कर पाते, और जड़ कहे जाते हैं, ज्ञान का दुरूपयोग करने वाले मनुष्‍यों में विवेक का अभाव होता है । ज्ञान दही है, बुद्धि मथनी और विवेक उसका घृत होता है । - संकलित हिन्‍दू धर्म शास्‍त्रों से  

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