शनिवार, 30 अगस्त 2008

कमजोर राजा और पतले वृक्ष की शरण कभी न लें ये अवश्‍य धोखा देते हैं

रहति लटपट काटि दिन, बरू घामें मां सोय । छांह ना बाकी बैठिये, जो तरू पतरो होय ।। जो तरू पतरो होय, एक दिन धोखा दैहे । जा दिन बहै बयारि, टूटि तब जर से जैहे ।। कह गिरधर कविराय, छांह मोटे की गहिये । पाती सब झरिं जांय, तऊ छाया में रहिये ।। पतले वृक्ष अर्थात कमजोर राजा की शरण या राज्‍य में नहीं रहना चाहिये, ऐसे राजा के राज्‍य की शरण में रहने से एक दिन तगड़ा धोखा होता है और जिस दिन भी तेज हवा या आंधी चलती है, कमजोर और पतले वृक्ष जिस तरह जड़ से उखड़ कर उड़ जाते हैं, उसी तरह ऐसा राजा भी कुनबे सहित भाग निकलता है और लुप्‍त व गुप्‍त हो जाता है । भारत के प्रसिद्ध गिरधर कवि ने इस कुण्‍डली में कहा है कि सदा ही मोटे वृक्ष और भारी राजा (जिसका साम्राज्‍य पुख्‍ता हो और प्राचीन हो तथा विश्‍वसनीय कुल का हो) की ही शरण व राज्‍य का आसरा लेना चाहिये । ऐसा वृक्ष सारी पत्तियां झड़ जाने के बावजूद भी छाया और सुख प्रदान करता है, ऐसा राजा व उसका राज्‍य भी सब कुछ व्‍यतीत हो जाने या नष्‍ट हो जाने पर भी सुख व समृद्धि देता है । अन्‍यथा भीषण लपट और घाम (तेज धूप) रहते हुये भी बिना वृक्ष के खुले में बैठकर कष्‍ट भोगना उत्‍तम है- गिरधर कवि की कुण्‍डली भारत के अति मान्‍य प्राचीन कवि  

बुधवार, 27 अगस्त 2008

वाणी से धोखा होता है, वाणी के धोखे न आयें

मधुरी मीठी बानी, दगाबाज की निशानी ।

मीठा और मधुर बोल कर लोग पीठ में छुरा घोंपते है, ऐसे लोगों से सावधान रहना चाहिये, ये लोग दगाबाज होते हैं घाघ भड्डरी

हल्‍दी जर्दी नहिं तजे, खटरस तजै न आम । शीलवान गुन ना तजै, ना औगुन तजै गुलाम ।।

हल्‍दी अपना पीला रंग नहीं छोड़ती, आम अपनी खटास नहीं छोड़ता, इसी प्रकार कुलीन और शीलवान लोग अपने गुण नहीं छोड़ते, और वर्णसंकर कुलहीन लोग अपने अवगुण नहीं छोड़ते ।। मुंह में राम, बगल में छुरी इस देश में बहुत संख्‍या ऐसों की है जो मुख से वाणी कुछ और निकालते हैं, और ब्गल में छुरी छिपा कर रखते हैं  - भारत की प्राचीन देशी देहाती कहावतें     

सोमवार, 25 अगस्त 2008

गदहे से गदहें मिलें, मारें लातई लात

ज्ञानी सों ज्ञानी मिलें, होंय ज्ञान की बात । मूरख से मूरख मिलें चलिहें घूंसा लात ।।

थोड़ा बदल कर भारत के अन्‍य क्षेत्रों में द्वितीय पद यह है गदहे सों गदहा मिलें, मारें लातई लात ।। भावार्थ यह है कि जब दो विद्वान या चतुर सुजान (सुज्ञान का अपभ्रंश) मनुष्‍य मिलते हैं तो आपस में विद्वता व ज्ञान तथा सामंजस्‍य युक्‍त व्‍यवहार व आचरण कर बड़ी से बड़ी समस्‍या का निवारण चुटकियों में आसानी से निकाल लेते हैं, किन्‍तु जब दो मूर्ख मनुष्‍य आपस में मिलते हैं तो वे बात बात पर घूंसा और लात चलाते रहते हैं, वे किसी भी समस्‍या का निवारण नहीं कर पाते और समस्‍या को उल्‍टे उलझाते चले जाते हैं, जैसे जब दो गधे मिलते हैं तो सारा समय एक दूसरे को लतियाते रह कर लातें मारते रहते हैं । गोस्‍वामी तुलसीदास ने राम चरित मानस में इसी पद सार को इस प्रकार व्‍यक्‍त किया है- जहॉं सुमति तहॉं संपति नाना, जहॉं कुमति तहॉं विपति निधाना ।। अर्थात जहॉं सुमति अर्थात अच्‍छी मति (बुद्धि) के लोग मिल जुल कर प्रेमपूर्वक सामंजस्‍यपूर्ण ढंग से रहते हैं वहॉं नाना प्रकार (भांति भांति की या अनेक प्रकार की) की संपत्तियां, सुख व समृद्धियां निवास करतीं हैं, किन्‍तु जहॉं कुमति अर्थात दुर्बुद्धि से ग्रस्‍त होकर लोग आपस में कलह क्‍लेश युक्‍त वातावरण में परस्‍पर विद्धेष रख कर लड़ते झगड़ते हुये रहते हैं वहॉं नाना प्रकार की विपत्तियां व संकट अपने आप ही पैदा होते रहते हैं और सुख समृद्धि व समस्‍त संपत्ति स्‍वत: नष्‍ट हो जाती है  - संकलित, प्राचीन भारतीय कहावत एवं रामचरित मानस से

रविवार, 24 अगस्त 2008

दूसरे का धर्म दुख देने वाला होता है

श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।
स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः॥३-३५॥

It is better to perform ones own duty. Own duty (svadharmah), how- so- ever deficiently performed, is superior to the well-accomplished duty of some one else   (prescribed for some one else). Better is death in   one's own duty, as there always remains fear while performing the duty of some one else.

Lesson: For liberation from fear, perform your own obligatory duty rather than attending to the jobs prescribed for some one else.

अच्छी तरह से आचरण में लाए हुए दूसरे के धर्म से गुण रहित भी अपना धर्म अति उत्तम है। अपने धर्म में तो मरना भी कल्याणकारक है और दूसरे का धर्म भय को देने वाला है। ॥३५॥  भगवान श्रीकृष्‍ण श्रीमद्भगवद्गीता अध्‍याय 3 श्र्लोक 35

 

बुधवार, 20 अगस्त 2008

बुद्धि और विवेक के बगैर ज्ञान बेकार है, पढ़ना के साथ गुनना भी जरूरी

ज्ञान मृत होता है, उसमें न तो स्‍वयं की चेतना होती है न स्‍वयं सक्रियता, उसे चेतन होने के लिये बुद्धि की आवश्‍कता होती है, और सक्रिय होने के लिये बुद्धि से संयोग की, लेकिन ज्ञान का सदुपयोग और सुसक्रियता हेतु विवेक की आवश्‍यकता होती है, विवेक ही उचित अनुचित में फर्क करता है, प्रज्ञा बुद्धि को स्थिर करती है । पुस्‍तक में बन्‍द पड़ा ज्ञान मृत ही रहेगा यदि उसे बुद्धि व विवेक का सामर्थ्‍य, सहयोग व सक्रियता न मिले । चतुर मनुष्‍य बुद्धि की साधना कर विवेक से ज्ञान का सदुपयोग करते हैं, मूर्ख मनुष्‍य ज्ञानी होकर भी बुद्धि के अभाव में उसका उपयोग नहीं कर पाते, और जड़ कहे जाते हैं, ज्ञान का दुरूपयोग करने वाले मनुष्‍यों में विवेक का अभाव होता है । ज्ञान दही है, बुद्धि मथनी और विवेक उसका घृत होता है । - संकलित हिन्‍दू धर्म शास्‍त्रों से  

रविवार, 17 अगस्त 2008

बारूद का ढेर मत बनिये, शान्‍त चित्‍त रहिये

उस मनुष्‍य के पास कौन बैठना चाहेगा, उस मनुष्‍य को कौन अपने पास बिठाना चाहेगा, जो हमेशा बारूद का ढेर बना घूमता है, और जिसका पता नहीं कि वह कब फट पड़े जेम्‍स एलन  

आलस्‍य मनुष्‍य का महा शत्रु है

आलस्‍यो हि मनुष्‍यांणां महारिपु:

आलस्‍य ही मनुष्‍य का महाशत्रु है चाणक्‍य

 

 

तुलसी मीठे वचन सों, सुख उपजत चहुँ ओर ।

वशीकरन एक मंत्र है तजि दे वचन कठोर ।।

तुलसीदास जी कहते हैं, कि मधुर वाणी से चारों ओर सुख बढ़ता है और लोकप्रियता बढ़ती है । कठोर वाणी का त्‍याग करना ही सबसे बड़ा वशीकरण मंत्र है । - संकलित

वशीकरण का मंत्र

तुलसी मीठे वचन सों, सुख उपजत चहुँ ओर ।

वशीकरन एक मंत्र है तजि दे वचन कठोर ।।

तुलसीदास जी कहते हैं, कि मधुर वाणी से चारों ओर सुख बढ़ता है और लोकप्रियता बढ़ती है । कठोर वाणी का त्‍याग करना ही सबसे बड़ा वशीकरण मंत्र है । - संकलित

बुधवार, 13 अगस्त 2008

पाखण्‍डीयों का ईश्‍वर भक्ति ढोंग महज राज साधन हेतु होता है

जब गलत लोग या आसुरी प्रवृत्ति के लोग भगवान या ईश्‍वर का नाम सुमरने लगें या उसकी दुहाई देंनें लगें तो चतुर मनुष्‍यों को सावधान हो जाना चाहिये । यह आभास हो जाना चाहिये कि खतरा आसन्‍न व सन्निकट ही है ।

कुप्रवृत्तियों, दूषित प्रवृत्तियों, रजोगुण व तमोगुण में लिप्‍त मनुष्‍यों व पाखण्‍डीयों द्वारा ईश्‍वर का नाम लेने व ईश्‍वरीय आस्‍था व श्रद्धा का ढोंग एवं पाखण्‍ड करने से ईश्‍वर भी घृणा का पात्र हो जाता है और लोग ईश्‍वर में कलंक देखने लगते हैं अत: अनुचित वर्ण व अनुचित मनुष्‍य के कानों में व जिह्वा पर ईश्‍वर का नाम मात्र भी नहीं आना चाहिये ऐसे लोगों के कानों में व मुंह में पिघला हुआ सीसा भर देना चाहिये ।  - संकलित चाणक्‍य नीति एवं वेदों से

 

शुक्रवार, 8 अगस्त 2008

दुनियां का सबसे कमजोर व्‍यक्ति कौन है

''चिल्‍ला कर और झल्‍ला कर बातें करना, बिना सलाह मांगे सलाह देना, किसी की मजबूरी में अपनी अहमियत दर्शाना और सिद्ध करना, ये कार्य दुनियां का सबसे कमजोर और असहाय व्‍यक्ति करता है, जो खुद को ताकतवर समझता है और जीवन भर बेवकूफ बनता है, घृणा का पात्र बन कर दर दर की ठोकरें खाता है ।'' संकलित    

 

मंगलवार, 5 अगस्त 2008

समस्‍याग्रस्‍त जीवन

जब आपके पास कोई पैसा नहीं होता है तो आपके लिए समस्या होती है भोजन का जुगाड़. जब आपके पास पैसा आ जाता है तो समस्या सेक्स की हो जाती है. जब आपके पास दोनों चीज़ें हो जाती हैं तो स्वास्थ्य समस्या हो जाती है. और जब सारी चीज़ें आपके पास होती हैं, तो आपको मृत्यु भय सताने लगता है. जे पी डोनलेवी

सोमवार, 4 अगस्त 2008

काम, क्रोध और लोभ तीन नरक के द्वार

त्रिविधं नरकस्‍येदं द्वारं नाशनमात्‍मन: ।

काम: क्रोधस्‍तथा लोभस्‍तस्‍मादेतत्‍त्रयं त्‍यजेत् ।।

काम, क्रोध तथा लोभ ये तीन प्रकार के नरक के द्वार , आत्‍मा का नाश करने वाले अर्थात उसको अधोगति में ले जाने वाले हैं । अतएव इन तीनों का त्‍याग कर देना चाहिये । - श्रीमद्भगवद्गीता अध्‍याय 17 श्र्लोक 21