शुक्रवार, 18 जुलाई 2008

समय पर ही होते हैं कार्य, धैर्य धारण करना चाहिये

समय पाय तरूवर फलें, केतक सींचो नीर ।

कारज धीरें होत हैं, काहे होत अधीर ।।

समय पाकर अर्थात समय पूरा हो जाने के बाद ही वृक्ष फल देते हैं, चाहे उनकी कितनी भी सिंचाई क्‍यों न की जाये । इसी प्रकार हर कार्य अपनी प्रक्रिया व समय पूरा हो जाने के बाद ही पूर्ण होता है, इसलिये मनुष्‍य को धैर्य नहीं खोना चाहिये और समय पूर्ण होने तक निश्चिंत होकर प्रतीक्षा करना चाहिये । - संकलित (हिन्‍दी का प्रसिद्ध दोहा)  

बुधवार, 9 जुलाई 2008

राजा राज्‍य और राज (भेद) का सम्‍बन्‍ध

राजा राज्‍य से होता है, राज्‍य राज (रहस्‍य) संधारण से होता है, जिस राज्‍य के राज (रहस्‍य) राज नहीं रहते, वह राज्‍य शीघ्र ही नष्‍ट हो जाता है, राजा राज्‍य और राज तभी तक सुरक्षित रहते हैं जब तक राजा के राज सिर्फ राजा तक रहें, जिस राजा के राज आम होकर गलियों तक पहुँच जायें उसके राज्‍य का भेदन उतना ही सहज व राज्‍य पर नियंत्रण आसान होता है, अत: राजा को चाहिये समस्‍त भेदों को सुरक्षित रखे चाणक्‍य नीति   

रविवार, 6 जुलाई 2008

पूजा उपसना व सेवा किसकी करना श्रेष्‍ठ है

जिसको पूजोगे वैसे ही बन जाओगे उसी में अंतत: समा जाओगे और खुद भी वही तथा वैसे ही बन जाओगे, अत: पूज्‍य का चयन सोच समझ कर करिये, तंत्र शास्‍त्र व पूजन शास्‍त्र का यह गूढ़ रहस्‍य है- देखें गीता का यह रहस्‍योद्घाटक श्र्लोक  

यान्ति देवव्रता देवान्पितृन्‍यान्ति पितृव्रता: ।

भूतानि यान्ति भूतेज्‍या यान्ति मद्याजिनो अपि माम् ।।

देवताओं को पूजने वाले देवताओं को प्राप्‍त होते हैं, पितरों को पूजने वाले पितरों को प्राप्‍त होते हैं, भूतों को पूजने वाले भूतों को प्राप्‍त होते हैं और मेरा पूजन करने वाले भक्‍त मुझको ही प्राप्‍त होते हैं । इसलिये मेरे भक्‍तों का पुनर्जन्‍म नहीं होता । - भगवान श्रीकृष्‍ण, श्रीमद्भगवद्गीता अध्‍याय 9 श्र्लोक 25