बुधवार, 9 अप्रैल 2008

मनुष्‍य के उत्‍थान व पतन की सीमायें कितनी हैं

प्रत्‍येक मनुष्‍य एक वृत्‍त पर चलता है, यह वृत्‍त सीधा खड़ा होता है और हर मनुष्‍य के लिये इसका व्‍यास अलग अलग है, जिस पर चलकर वह एक निश्चित अवस्‍था या बिन्‍दु से अधिक नीचे नहीं जा सकता, इसी प्रकार एक निश्चित स्थिति या बिन्‍दु से अधिक ऊपर वह नहीं जा सकता, इन बिन्‍दुओं से आगे बढ़ने पर दूसरी अवस्‍था की ओर मनुष्‍य स्‍वत: बढ़ जाता है, इसमें पीछे की ओर चलना संभव नहीं, ये बिन्‍दु ही मनुष्‍य की उपलब्धियों व पतन का निर्धारण करते हैं स्‍वामी विवेकानन्‍द      

2 टिप्‍पणियां:

समयचक्र ने कहा…

bahut sundar vichaar hai dhanyawad

राजेंद्र माहेश्वरी ने कहा…

नवयुग यदि आएगा तो विचार शोधन द्वारा ही, क्रान्ति होगी तो वह लहू और लोहे से नही, विचारो की विचारो से काट द्वारा होगी, समाज का नवनिर्माण होगा तो वह सद् विचारो की स्थापना द्वारा ही संभव होगा |

आपके स्नेहाधीन

राजेंद्र माहेश्वरी
http://yugnirman.blogspot.com/
पोस्ट- आगूंचा , जिला - भीलवाडा, पिन - ३११०२९ ( राजस्थान ) भारत
ईमेल personallywebpage@gmail.com
स्वरदूत - 01483-225554, 09929827894